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Lakshman Jha

Tragedy

3  

Lakshman Jha

Tragedy

बन्दर बाँट

बन्दर बाँट

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231


जश्न तो हम ऐसे

मना रहे हैं,

अपने दुश्मनों को

कोई अच्छा

सबक सीखा रहे हैं !


अब बन्दर बाँट

वहां की धरती की होगी,

फिर लोगों का

जमाबड़ा होगा

और फिर महफिल सजेगी !


370 को हटा कर

लगता है कोई

खजाना मिल गया,

अपने ही लोगों के

कलेजे पे दाल दलना

सीखा दिया !


विकास के सब्ज बागों

को दिखा के

उनको कैद कर दिया,

टेलीफोन, इंटरनेट सुविधा

को पंगु बना दिया !


घर से बाहर निकलना

उनका दूसबार हो गया,

कैद में रखकर सभी को

कैदी बना दिया !


कहते हैं "वे तो अपने हैं "

फिर उनकी आज़ादी

कहाँ गयी ?

अपने दर्द को कह नहीं सकते

उनकी चाहत

कहाँ गयी ?


अपनी व्यथाओं से कोई

कराह रहा है

उसकी किसी को

परवाह नहीं,

उसके घर की बोली

किसी को रुकवाने

की चाह नहीं !


जब तक हम उनके

जख्मों को भर

ना सकेंगे,

तब तक हम जीवन भर

उसके हो ना सकेंगे।


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