-बंधन-
-बंधन-
सात कदम चलकर जो बांधा
सात जन्म का बंधन था
तेरा मुझको, मेरा तुझको
वो हृदय से अभिनंदन था
दृष्टि, वाणी, भाव सभी कुछ
वो साथ मिला खुद चंदन था
आशाएं पलती बढ़ती थीं
मन में कलियां सी खिलती थीं
अपना न छूटे साथ कभी
दिल की आवाजें कहती थीं
हर सांस कहा करती अक्सर
न ऐसा आए वक्त कभी
जीना पड़ जाए तुझे खोकर
मेरी, उसकी ये चाहत थी
हम जीते रहें अमर होकर
विधि की निश्चित सीमाएं थीं
बंधन में बंधी ऋचाएं थीं
आखिर भ्रम सब दूर हो गया
चंद्र गगन में लुप्त हो गया
अब कहां रहा वो बंधन है
रुके कदम टूटे सपनों का क्रंदन है।