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Jalpa lalani 'Zoya'

Romance

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Jalpa lalani 'Zoya'

Romance

बंध खिड़की की दरार

बंध खिड़की की दरार

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हाँ वो बंद खिड़की की वो दरार आज भी 

याद दिलाती है मुझे अपने बीते लम्हों की दास्तां


वही लम्हें जो हमने साथ बिताए थे

उसी बंद खिड़की के पास जहाँ बैठा करते थे


उस बंद खिड़की की दरार से आज भी हवा गुजरती है

जैसे हमारी साँसे बयां करती थी हमारा हाल-ए-दिल


अभी भी वो पेड़ वो बंद खिड़की को छूता है

जिस तरह तुम मेरे हाथ को छुआ करते थे


उस बंद खिड़की की दरार से अभी भी रोशनी आती है

जैसे तुम्हें देखकर मेरी आँखों में कभी चमक हुआ करती थी


वो मकान वो बंद खिड़की अब सुनसान लगते हैं

जैसे मैं तन्हा, अकेली हूँ तुम्हारे बिन


आज भी वो बंद खिड़की से गूंज सुनाई देती है

ऐसे ही जैसे तुम मेरा नाम पुकारा करते थे


आज भी वो बंद खिड़की को आस है, कभी तो खोली जाएगी

जैसे मैं अभी तक तुम्हारी राह तकती हूं, एक दिन तो तुम आओगे।



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