बन्दगी
बन्दगी


मेरी ज़िन्दगी में तुम्हारा मुक़ाम
कुछ यूँ समझ लो
बारिश की बूंदों के बुलबुले सा है
यह इश्क़ खुदा न सही लेकिन
मेरे लिए तो उस खुदा सा ही है
जो है भी और ज़ाहिर भी नहीं है
फिर भी उसका वज़ूद हर शय में
हर ज़र्रे में अपनी मौज़ूदगी बाबस्ता करता है
मेरा यकीन साथ रहने पर भी है और
साथ न होने पर भी
वो जिस शक़्ल अपना बना ले
वो जिस तरह अपना बना ले
वो जिस तरह अपने नूर से नवाज़ दे
फिर चाहे वो इश्क़ हो या बन्दगी