बंद पिंजड़े में दुनिया मेरी
बंद पिंजड़े में दुनिया मेरी
हरे रंग के पंख फैलाकर
खुले आसमान में हंसता फिरता,
जंगल के पेड़ पर घौसले में
अपने बापू के साथ रहता।
दिनभर दाना चुगता बापू
शाम को जोरो से हसांता,
हर सुबह शाम मुझे जिंदगी
जीने के नए पाठ पढ़ाता।
खाना ढूंढने निकली थी माँ
मांजे में उलझकर गई छोड़,
थम सी गई हमारी दुनिया लेकिन
जिने लगे दोनों नियति का नया मोड़।
जब उसकी की कमी याद आती
तब बापू ने प्यार किया माँ बनकर,
दिल आज भी बहुत दुखता है
बापू को उसके याद में रोता देखकर।
नदी के किनारे पानी पी रहा था
वहीं सो गया प्यास बुझाकर,
नींद खुली जब खुदको पाया
फंसता हुआ जाल में उलझकर।
पिंजड़े में बंद कर मुझे उसने
जब उसके घर में ले आया,
खुशी से कुदते उछलते बच्चो ने
मुझे हर लोगों से मिलवाया।
चीखता चिल्लाता हुआ मै
जोर से पंख फड़फड़ाने लगा,
ढूंढता फिरता यहां वहा
जब मेरा बापू नजर आया।
तोता मिलने की खुशी पर
वे खा रहे थे मिठाई,
रात को भूखे पेट सोए हुए मेरे
बापू की मुझे बहोत याद आई।
पंछियों को भी दिल है
पर कोई मानता नहीं,
मेरे बापू को कह दो मैं हू सलामत
पर कोई यहां मेरी सुनता नहीं।