माँ...
माँ...
इस दिल में उसे कैसे जगह दूं
जिसने मुझे यह दिल दिया।
मेरी हर एक छोटी सी छोटी,
गलती को उसने नजरअंदाज किया।
बचपन से लेकर आजतक,
उसने मुझे बनाया इस काबिल।
जिंदगी के आने वाले दिनों में,
हर मुकाम को कर सकूं हासिल।
जिंदगी के रेस में दौड़ता रहा,
लेकिन वो दिल जीत गई चलते चलते।
अपने हिस्से के सारे सुख लिख गई,
मेरे तकदीर में हंसते हंसते।
अपने सारे दुःख को भूलकर,
मेरे साथ बांटती हैं खुशियां।
मुझे खिलते हुए देख खो जाती है,
भूलकर यह सारी दुनिया।
खुद के अस्तित्व को भूलकर,
मेरे सपनों को सेहलाती है।
परमात्मा का दूसरा रूप है यह,
जो सिर्फ माँ कहलाती है।
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