बिना पंखों की उड़ान
बिना पंखों की उड़ान
कैसे बनाऊँ खुद की पहचान,
मुक़म्मल करके वह आसमान,
लिखूँ उस पर खुद का नाम,
कैसे लूँ मैं बिना पंखो की उड़ान।
होती अगर मैं चिड़िया तो अपने पंख पर इतराती,
उड़-उड़ के आसमॉं की वादियों में खो जाती,
पा जाती उन ऊंचाइयों को जिनके है अरमान,
कैसे लूँ मैं बिना पंखो की उड़ान।
बिना पंख की चिड़िया को उड़ना भला कब आया है,
ऊंचाइयों की इच्छाओं ने मुझे ललचाया है,
भीगी पलकों से हर पल देखूं यही एक ख्वाब,
कैसे लूँ मैं बिना पंखो की उड़ान।
मगर सच तो यह भी है, हौसले कहा पंख पाते है,
बिना पंख के ही मंज़िल तक ले जाते है,
अगर मजबूत है मेरे हौसलों की चट्टान,
तो कहा मुश्किल है मेरी बिना पंखो की उड़ान।