आँसुओं की कोई क़ीमत नहीं
आँसुओं की कोई क़ीमत नहीं
बचपन में जब कभी...
मैं रोया करती थी..
तो मेरे पापा मुझे चुप कराया करते थे..
कहकर मेरे आँसुओं को मोती...
मुझे इस दुनिया में सबसे अमीर बताया करते थे...
मैं भी सुनकर पापा की बात..
तुरंत से चुप हो जाया करती थी..
खुद को सोचकर सबसे अमीर...
मन ही मन इतराया करती थी...
पर जब दुनिया में कदम बढ़ाया...
तो जाना बचपन कितना नादान था...
सिर्फ मुझे हंसाने के लिए दिया..
पापा का ये झूठा ज्ञान था....
क्यूँ एक गरीब रोता है...?
क्यूँकि उसके पास आँसुओं
के सिवा कहा कुछ होता है..!!
दिल तो बावला है जब मर्ज़ी दुःख जाता है....
बहते है आँसू आजकल कौन चुप कराता है...
देख कर दुनिया को मैंने भी जान लिया...
आँसुओं की कोई क़ीमत नहीं....हाँ मान लिया..!!