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Anu Jain

Inspirational

4.3  

Anu Jain

Inspirational

सपना

सपना

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सपना मेरा मैं कैसे छोड़ दूँ...

दुनिया के खौफ से क्या,

खुद को तोड़ दूँ??


मैं कोई हवा नहीं...

जो वक़्त के साथ बह जाऊँगी,

मैं तो वो मूरत हूँ...

जो मरकर भी अपने होने का...

 एहसास छोड़ जाऊँगी....

खुद की ख्वाहिशों का गला,

मैं खुद ही कैसे घोट दूँ...

सपना मेरा मैं कैसे छोड़ दूँ...


एक दूब भी कभी,

हार नहीं मानती..

कोशिशें लाख होती है,

उसे उखाड़ फेकने की,

पर वो फिर उग आती है...

अपने वजूद की पहचान...

मिटने से हर पल बचाती है...

आसमान की ओर सर उठाए,

फिर से खिल-खिलाती है...


भला मैं तो फिर भी,

एक इंसान हूँ...

मैं कैसे आशाओं का,

class="ql-align-center">दामन छोड़ दूँ..

दुनिया के खौफ से क्या,

खुद को तोड़ दूँ??

सपना मेरा मैं कैसे छोड़ दूँ...


देखती हूँ मैं उस चींटी को, 

जो दिवार पर मुँह में

अपना खाना दबाए...

चढती चली जाती है।।

गिरता है जाने कितनी बार,

उसका अन्न, फिर भी बार-बार,

उतर कर वो उसको उठाती है।।

नहीं मानती हार जब तक,

अपनी मंज़िल तक नहीं पहुँच जाती है।।

उसकी हिम्मत ही उसका साथ निभाती है।।


जब चींटी जैसी नन्ही जान,

अपनी हार स्वीकार करना नहीं चाहती है।। 

भला मैं तो फिर भी,

एक इंसान हूँ...

मैं कैसे आशाओं का,

दामन छोड़ दूँ...

दुनिया के खौफ से क्या,

खुद को तोड़ दूँ??

सपना मेरा मैं कैसे छोड़ दूँ...


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