एक तरफ़ा प्यार
एक तरफ़ा प्यार
कभी-कभी अकेले में सोचती हूँ,
क्या मोल है मेरे प्यार का....
मूल्य तो इसका तब होता,
जब तू अपनाता।
तेरी एक हाँ से मेरा भी प्यार
अनमोल कहलाता।
पर तेरे इनकार से मिट गया
सपनों का संसार,
रूह ने कहा मुझसे उस दिन,
बस अब बंद कर अपना
एक तरफ़ा प्यार....
भला क्यूँ मेरी ही आँखें मेरी नहीं रही,
जब रोती है ये तेरी याद में,
मैं चाह कर भी इसे रोक नहीं पाती....
बहते अश्को में झुलसाती अपनी ही
आँखों को,
समझा नहीं पाती, कि चुप कर पगली,
इन बहते आँसुओं का कोई मोल नहीं...
ये तो है केवल पानी की बहती क़तार।
बस अब बंद कर अपना
एक तरफ़ा प्यार...
क्यूँ मेरा ही दिल मेरा ना रहा,
देख कर भी
तेरी बेरुख़ी तुझे ही
चाहता है।
तेरे वापस आने के इंतज़ार में...
कितनी ही रातें ये जाग कर
बीताता है।
क्यूँ नहीं करा पाती मैं इसे,
तेरे प्यार के बंधन से आज़ाद।
कहती रहती हूँ हर पल इसे,
तेरा इंतज़ार करना है बेकार।
बस अब बंद कर अपना
एक तरफ़ा प्यार....
आज कल लोगों के बीच,
ज़रूरत से ज़्यादा ही मुस्कुराती हूँ,
सच कहूँ तो नकली मुस्कान में
अपने ग़म को छुपाती हूँ….
जानती हूँ तू नहीं है मेरा,
फिर भी क्यूँ रहती हूँ बेक़रार...
सम्भालने के लिए खुद को,
कहने पड़ते है ये लफ्ज़ बार-बार
बस अब बंद कर अपना एक तरफ़ा प्यार...
बस अब बंद कर अपना एक तरफ़ा प्यार...