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रास्ते चलते गए मैं बढ़ता गया

रास्ते चलते गए मैं बढ़ता गया

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रास्ते चलते गए मैं बढ़ता गया

समय के साथ-साथ मैं भी बदलता गया

आई चुनौतियाँ हज़ार सबसे लड़ता गया

दुख के बादल छाये मगर मैं हँसता गया

रास्ते चलते गए मैं बढ़ता गया


क्या खोया क्या पाया सब का हिसाब

रखता गया

भूल कर अपना बचपन जिम्मेदारियों

में फंसता गया

लगा दी जिंदगी जिसे कमाने में उस पल

का इंतजार करता गया

कभी अपनों के साथ कभी अपनों के

बगैर मोमबत्ती की तरह पिघलता गया

रास्ते चलते गए में बढ़ता गया


हिम्मत टूटी लाखों बार गिरकर भी

संभलता गया

न सपने संजोए सुख के न दुखों से मैं

डरता गया

खो कर खुद को एक नई पहचान का

सफर तय करता गया

ना रुका ना थमा ना बैठा बस मंज़िल

की ओर बढ़ता गया

रास्ते चलते गए मैं बढ़ता गया..


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