सोन चिरैया
सोन चिरैया
तिनका तिनका जोड़ समेटी उसने खुशियां
अपने कभी न थकते पाँवों से नापी कितनी गलियां
चहकूं मैं तो वो भी चहके
देखे मेरी सब अठखेलियां
कांधे पर बिठला कर गाये लोरी -
ले लो ले लो मटर की दो फलियां
बाबुल मेरा भोला-भाला
मैं बाबुल की भूलभुलैया
मैं बाबुल का टुकड़ा जिगर का
मैं बाबुल की नन्ही गुड़िया
जाती हवा रुकी जरा और हँस कर बोली- न इठला
न मैं थमी न तू थम पायेगी
एक दिन पी के घर बह जाएगी
मैं बोली मैं ना जाऊँ मेरा तो यहीं बसेरा
पी के घर जाये कोई और
मैं तो बाबुल की नन्ही गुड़िया
ना ना ना बोली हवा
तू तो बाबुल की सोन चिरैया
चीं चीं कर उड़ जाएगी
करके सूनी बाबुल की गलियां
बरखा आई बहार आई ला दी बाबुल ने चार चूड़ियाँ
फुदक-फुदक कर नाची मैं और छन छन बोली चूड़ियाँ
झुकी हुई कली एक मंद-मंद मुसकाई
हँस कर बोली तेरी मेरी एक पहेली
एक बहार तुझ पर भी आएगी
और एक दिन तू दूजे बाग उड़ जाएगी
मैं बोली मैं ना जाऊँ मेरा तो यहीं बसेरा
मैं तो अपने बाबुल की एक नन्ही गुड़िया
कली बोली अरी ओ पगली
ज़िद तेरी तब सब धरी रह जाएगी
तू तो बाबुल की सोन चिरैया
चीं चीं कर उड़ जाएगी
आईं कई बहारें और गए कई नज़ारे
नन्ही नन्ही बाँहों ने पंख बड़े बड़े खोले
समय हवा हो गया कब छूटी सब किलकारियां
सखियों को जाते देखा, बजी मेरे भी घर शहनाइयां
मैं बोली मैं ना जाऊँ सूना कर बाबुल
तेरी बाँहों का घोंसला
कौन सुनाएगा फिर वो लोरी
'ले लो ले लो मटर की दो फलियां'
क्यों डोली में मेरी पंख दिए लगवाये
कैसे सूना कर दूं वो आँगन जहाँ इतने सावन बिताये
बाबुल ये चार चूड़ियाँ बन गयी हैं हथकड़ी
ना जाऊँ छोड़ तुझे मैं तो तेरी नन्ही गुड़िया
आँखों में अपनी बाबुल आंसू मेरे भर लाया
और पुचकार माथे को रुंधे गले से बोला
जा बेटी जा अब पी के घर तेरा बसेरा
तू तो अपने बाबुल की एक नन्ही सोन चिरैया