एक वरिष्ठ नागरिक की आप बीती
एक वरिष्ठ नागरिक की आप बीती
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सेल्समेन, दूधवाले, दूकानदार से
घंटों बेफिजूल बातें कर मन बहलाता हूँ
तन्हाई जब दम घोटने लगे तो
सरोजिनी के बाजार में
यूँ ही टहल आता हूँ
मेहमान बन कर आतें हैं दामाद बेटी
कभी मैं मेहमान बन कर जाता हूँ
पहले जिन्हें डांट-डपट कर लेता था
अब उनसे चुपचाप खुद डांट खा लेता हूँ
सत्ताधारी ना रहा
अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ
ज़रा सी बात पर अब सहम सा जाता हूँ
सीनियर सिटीजन की कतार में
मैं खूब धौंस जमाता हूँ
ट्रेन के चालीस प्रतिशत कन्सेशन में भी
अपना सिक्का चलाता हूँ
पार्कों में, क्लब में
इन सफेद मूछों का ताव दिखाता हूँ
पर फिर अपने ही दो मंजिला मकान की
चार सीढ़ियों पर पस्त हो जाता हूँ
सत्ताधारी ना रहा
अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ
ज़रा सी बात पर अब सहम सा जाता हूँ |
नौकर, माली ,चौकीदार
या फिर अस्पतालों का ये जंजाल
कभी इधर तो कभी उधर
मैं पंजा लड़ाता हूँ
कभी चाय के साथ सुड़क सुड़क कर
चार बिस्कुट खा लेता हूँ
तो कभी पेंशन के महीन कागज़ से
कोई हवाईजहाज बनाता हूँ
सत्ताधारी ना रहा
अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ
ज़रा सी बात पर अब सहम सा जाता हूँ |
कभी मॉलों के एसकेलेटर पर
पांव जमाता हूँ
कभी गुर्राती गाड़ियों के बीच
स्टीयरिंग कस कर पकड़े फड़फड़ाता हूँ
स्मार्ट फ़ोन, स्मार्ट सिटी के उलजुलूल में
मेरे परिपक्वता का सब अभिमान खो गया है
इस महानगर की महामाया में
रंग बेरंग सा हो रहा हूँ
सत्ताधारी ना रहा
अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ
ज़रा सी बात पर अब सहम सा जाता हूँ |