Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

बिना मूल का पता लगाए

बिना मूल का पता लगाए

1 min
403


बूंद बूंद कर धार बनी कब, धारों ने कब नदी बनाई

पथ खोजे किस भांति नदी ने, कब-कब कहां-कहां टकराई।


धोए कलुष कहां कितनों के, कब कितनों की प्यास बुझाई 

मझधारों में कितने डूबे, कब कितनों ने जान गंवाई।


कब-कब सिमटी रही तटों में, कब तटबंध तोड़कर आई

कहां बही रह धीर नदी, कब, चंचल चपल पड़ी दिखलाई।


 जग को बांट मिठास नदी, कब, खारे सागर बीच समाई

 करुण कथा तब भी न नदी की, कहीं किसी ने कही सुनाई।


था वर्जित इसलिए कभी हम, मूल नदी का खोज न पाए

कथा नदी की कौन लिखे तब, बिना मूल का पता लगाए।


Rate this content
Log in