"बिखराव की नियति"
"बिखराव की नियति"
बिखरा रहना भी एक सुकून देता है,
जैसे हवाओं में छुपा कोई गीत।
कुछ चीज़ें सुंदर लगती हैं बस इसलिए,
क्योंकि उन्हें समेटा नहीं जा सकता।
नदी की धारा को कौन थाम पाया,
आकाश की गहराई को किसने छू लिया?
समुद्र की लहरें बाँहों में कहाँ आती हैं,
यादें भी वैसी ही—बिखरती चली जाती हैं।
जब अपनों से मिला, लम्हे ठहराना चाहा,
पर वक़्त ने हँसकर उन्हें आगे बढ़ा दिया।
मैंने चाहा उस क्षण को मुट्ठी में भर लूँ,
पर मुट्ठी खुलते ही खाली रह गई।
यादों का कोई किनारा नहीं होता,
वो बिखरती हैं—बादल की तरह, धूप की तरह।
और तब समझ आया, यही है जीवन,
समेटा जाए तो बोझ, बिखरे तो सौंदर्य।
अंततः सब कुछ बिखर जाना है,
शब्द, रिश्ते, पल, साँसें भी।
यही नियति है, यही सत्य है,
बिखराव में ही छिपा है संपूर्ण होना।
