क्या मैं अकेली हूँ ?
क्या मैं अकेली हूँ ?
क्या मैं अकेली हूँ..?
तेरे साथ मिलकर शुरू किया था
जो सफर ...
क्या उस प्रेम की राह में मैं आज अकेली हूं ?
तुम थे तो मेरे साथ ... अभी कुछ ही पल पहले ,
फिर अचानक कहाँ चले गए , तुम ऐसे पलटे
जैसे तुमने मुझसे प्रेम नहीं कोई सौदा किया था ...
तुम्हारे रवैये से मैं सोच रही हूं ...
क्या इस प्रेम की राह में मैं आज अकेली हूं।
तुम्हारे लिए लिखी मेरी कविताओं का..
तुम्हारी नजर में कोई अस्तित्व ही नही..
कितनी आसानी से तुमने कविताओं में पिरोये मेरे प्रेम को
नकार दिया...जैसे एक पल में तुमने मेरा अस्तित्व ही मिटा दिया हो।
सोचती हूँ , तुमसे सवालों की बौछार करू...
या दिल मे तुम्हारे दिये दर्द का जो गुब्बार है...
उससे तुम पर ही मैं वार करू ...
मैं इस सताये हुए दिल को याद दिलाकर कहती हूँ ...
" मैं तुम्हारे प्रेम में हूं " ,लेकिन अगले ही पल विचार आता है ...
क्या इस प्रेम की राह में आज भी मैं अकेली हूँ ?

