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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Classics Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Classics Inspirational

एकांत

एकांत

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कभी घर भी भरा रहता था और मन भी 

आज तो घर और मन दोनों ही खाली हैं 


किसी के पास दो पल की फुरसत नहीं 

आज हर आदमी फिरता यहां सवाली है 


ममता का सागर उफनता था जहां कभी

उस मां का दिल रीती गागर सा खाली है 


मियां बीवी में बोलचाल अब न के बराबर है

मोबाइल में सबने अपनी दुनिया बसा ली है


भीड़ में भी खुद को अकेला पाता है आदमी 

दौलत से लबरेज पर दिल का कोना खाली है


कभी एकांत में दिल से साक्षात्कार करना "हरि"

जो मुस्कान चेहरे पे सजी है, वो कितनी जाली है।


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