बिखराते रहें सतरंगी पल
बिखराते रहें सतरंगी पल
रहें प्रफुल्लित हर हाल हालत में,
बाधाएं झुंझलाने से न होतीं हल।
भूल गमों को बिखेरें हम खुशियां,
हम बिखराते रहें सतरंगी पल।
मायूसी ने घेर रखा है हर जन को,
ग़मों ने व्यथित किया है हर मन को।
ग़म हैं जननी विविध व्याधियों की,
जो कर देती हैं निर्बल हर तन को।
निर्बल तन और मन हो व्यथित तो,
घटता ही रहता है आत्मा का बल।
रहें प्रफुल्लित हर हाल हालत में,
बाधाएं झुंझलाने न हो पाएं हल।
भूल गमों को बिखेरें हम खुशियां,
हम बिखराते रहें सतरंगी पल।
विनम्रता हमको प्रमुदित करती है,
और बहु दुख देता हमको अहंकार।
मधुर स्वभाव परहित की भावना,
दिखलाती कुल से पाए हैं संस्कार।
व्यवहार और आचरण की सरलता,
देती हर कहीं हमें खुशियां हर पल।
रहें प्रफुल्लित हर हाल हालत में,
बाधाएं झुंझलाने न हो पाएं हल।
भूल गमों को बिखेरें हम खुशियां,
हम बिखराते रहें सतरंगी पल।
सुख होते हैं सबकी ही चाहत पर,
चिन्ता बस दुख की ही करते हैं।
सब ही तो चाहते हैं लम्बा जीवन,
प्रतिदिन घुट-घुट कर मरते रहते हैं।
अनुमानित दुख हित सुख मत खोएं,
बांटें खुशियां हर दम और हर पल।
रहें प्रफुल्लित हर हाल हालत में,
बाधाएं झुंझलाने न हो पाएं हल।
भूल गमों को बिखेरें हम खुशियां,
हम बिखराते रहें सतरंगी पल।