बिकाऊ
बिकाऊ
इतनी सफ़ाई से बेवक़ूफ़ बनाता हूँ मैं,
बन जाता हूँ मासूम,
क़त्ल कर मुस्कुराता हूँ मैं।
ख़ुद को भूलता जाता,
रोज़ एक सीड़ी सफलता की चड़ जाता।
या रोज़ गिर जाता हूँ, ख़ुद की नज़रों से।
आँखे चुराता अपने अक्स से,
बिकने के दाम तय करता हर रोज़।
तखती दाम की लगा बैठा हूँ,
ख़रीददार के इंतज़ार में।
नंगा, बेशर्म हो गया,
मैं भी,दुनिया के बाज़ार में।
बोली लगाते, ग्राहक अपने लगने लगे हैं।
बिकने अब मेरे भी, सपने लगे हैं
रोज़ ख़ुद को बेच, बेगानी ख़ुशी तलाशता,
हो कर दुःखी, घर लौट आता हूँ मैं।
