STORYMIRROR

Kanchan Prabha

Abstract Children

4  

Kanchan Prabha

Abstract Children

बिजुका की किस्मत

बिजुका की किस्मत

1 min
440

एक टाँग पर गड़ा बिजुका

बनता प्रहरी खड़ा बिजुका

कितने आँधी ओले बरसे

कभी ना भूख प्यास को तरसे

अटल अडिग सा गड़ा बिजुका

बनता प्रहरी खड़ा बिजुका


सिर पर कागा बैठा डट कर 

कम हो गये पुआल भी घट कर 

फिर भी चुप सा गड़ा बिजुका

बनता प्रहरी खड़ा बिजुका


मटकी डाल मुखड़ा जो सोभे

अपनी धुन के स्वप्न में खोवे

धरती में यूँ गड़ा बिजुका

बनता प्रहरी खड़ा बिजुका


सूरज की गर्मी से तपता

जीवन उसका रफ्ता रफ्ता

कंकड़ शूल में गड़ा बिजुका

बनता प्रहरी खड़ा बिजुका


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract