बीत रहे दिन
बीत रहे दिन
यह बीत रहे हैं दिन जैसे
देवदास जैसी व्याकुलता में
यह बीत रही हैं रातें सब।
अमावस्या की भांति उदासी में
दर्द समेटे दिल ने जब
उनको हर पल याद किया
तब भाव समेटे कंठ ने
हर छंद में
उनको गाया था !
जब भी निकली आंखों से आँसू
हमने तब उनको पाया था
जब लगा निरर्थक यह जीवन
सांसों में उनको पाया था
जब फूल खिले मेरे आंगन,
तब खुशबू में उनको पाया था !
यह बीत रहे हैं दिन जैसे
देवदास जैसी व्याकुलता में !