बिछुड़न
बिछुड़न
तेरे बिछुड़न की वो घडियाँ, रह-रह मुझको सताती हैं।
मिले अरसों बीत गये, रात-दिन याद तुम्हारी आती है।।
कैसी माया प्रभु तुम ने रचाई, अस्त-व्यस्त होता अब जीवन मोरा।
देख दुनियाँ के भयानक नज़ारे, हृदय व्याकुल, मन चिंतित मोरा।।
नाहीं सूझत अब कोई सहारा, तुम्हरे बिन अब न कोई हमारा।
दुःख न आते जीवन में तो, मुश्किल था लेना नाम तुम्हारा।।
कैसे मन को धीर बँधाऊँ, तुम ही करते हो सब की निगरानी।
कलुषित मन यह समझ न पाता, फिर भी करता यह मनमानी।।
तुमको ही समझा सब कुछ हमने, हम अनाथ तुम नाथ हमारे।
मिल न सकता प्रत्यक्ष रूप में, तुम ही मात्र "नीरज" के हो सहारे।।