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Priyanka Saxena

Abstract

4.5  

Priyanka Saxena

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भूलाबिसरा वो लाल डिब्बा टिन का

भूलाबिसरा वो लाल डिब्बा टिन का

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लाल रंग का वो‌ पोस्ट बॉक्स, वो लाल डिब्बा टिन का,

भूले-बिसरे कहीं पर मुश्किल से आजकल दिखाई देता है।

कभी लाल डिब्बा मोहब्बत की चिट्ठियां सम्भालता था, 

तो कभी माॅ॑ के दिल का हाल बताया करता था।

कभी बेटे-बेटी के अकेले रहने की मुश्किलें बयां करता था‌, 

तो कभी गाॅ॑व में बेसहारा माता-पिता के ग़मों का खुलासा करता था।

किसी बेटी के मायके की याद सीने में दबाए रखता था,

किसी बहन के राखी पर ना आने की आह समेट लिया करता था।

कहीं मनीआर्डर तो कहीं बुलावे पहुंचाया करता था,

कहीं शादी-ब्याह का मंगल कार्ड पहुंचाया करता था।

कहीं माॅ॑ का सैनिक बेटे के नाम वात्सल्य पहुंचाया करता था,

कहीं बार्डर से संदेश शहीद क

ा घर जवान के पहुंचाया करता था।

कहीं सेलेक्श‌न की ढेरों खुशियां आती थीं,

तो किसी के रिटायरमेंट की चिट्ठी आती थी।

खुशी में, दुख में, विरह में, प्यार में, सामान्य सी बातों में,

पोस्टमैन काका और लाल डिब्बा अहम भूमिका निभाया करते थे।

अब ना भेजे चिट्ठी कुशलक्षेम की लिखकर हाथ से,

कभी-कभार कोई बिरला ही पत्र लिखा करता है।

वो पोस्ट बॉक्स, वो लाल डिब्बे टिन के,

अब गुज़रे ज़माने की भूली बिसरी बात हो गए!

ईमेल, व्हाट्स अप, मैसेंजर,एसएमएस क्या आए,

खतों-किताबत बीते वक्त की महज़ यादें हो गए!

अब इन मशीनी शब्दों में ना भावनाएं हैं, ना सम्वेदनाएं हैं, 

बस औपचारिकताएं हैं, जो लोग आजकल पूरी किया करते हैं।



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