बसंत का प्रभाव
बसंत का प्रभाव
ऋतु बसंत भा रही, हृदय को लुभा रही
मधु को मधुमास में, प्रकृति पिला रही
पीत पुष्प पीत पात, पीत रंग देत मात
पीत वसन सजे गात, नित्य छटा छा रही
स्वर्णिम गेहूँ की बाल, पीली सरसों की डाल
मद्धम समीर संग, धीमें लहरा रही
धरती किसान आज, खुश है सारा समाज
स्वर लहरी फाग की, हृदय को भा रही1
उमंग का प्रवाह हो, हृदय भरा उछाह हो
माघ-फागुन मास हो,सुधा रस पीजिये
भृमर का गुंजार हो, मद्धम सी बयार हो
सुख का संचार हो, काव्य रच दीजिये
नये पुष्प खिल रहे, पात वृक्ष हिल रहे
रंग आज मिल रहे, स्वच्छ साँस लीजिये
गूँजे स्वर कोकिल के, असर हो यूँ दिल पे
नदी की कलकल से, हर्षित हो लीजिये।