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संजय असवाल "नूतन"

Abstract

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संजय असवाल "नूतन"

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भूल जाता हूं अक्सर

भूल जाता हूं अक्सर

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भूल जाता हूं

मैं अक्सर

अपनी यादों को

अपने जहन से उतारने के बाद,

परेशान भी हो जाता हूं अक्सर,

शायद वक्त के साथ,

अब साथ छोड़ने लगी है 

मेरी यादाश्त भी

उन यादों की तरह,

जो वहीं पर हैं

जहां मैंने रखे थे,

पर वो खुद कुछ नहीं कहते

बस चुपचाप पड़े रहते हैं

मुझे निहारते रहते हैं,

और मैं इसी उधेड़ बुन में

बिखेर देता हूं

यादों की दराज से

हर भूली बिसरी यादों को

यहां वहां,

जिन्हें संवारने में मुझे

वर्षों लग गए।


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