बहू
बहू
दो परिवारों के बीच सेतू, रिश्तों की धूरी हूं,
गृहस्थ जीवन की परिभाषा, स्वयं अपने अस्तित्व में पूरी हूं।
हर सुबह चलायमान मुझ से, घर का मेरूदंड हूं,
समझौतों, त्याग का रूप ही नहीं, घर का सौभाग्य अखंड हूं।
वंश बेल फलती मुझ में, घर के आंगन का कदम्ब हूं,
अमावस से जीवन के अंधेरों में भी, प्रकाश का प्रतिबिम्ब हूं,
परिवार में नमक सरीखी, हर कोने को पोषित करती,
मकान को घर बनाने वाला, पसीना और लहू हूं,
हां! मैं बहू हूं।