बहुत सरल है जानना
बहुत सरल है जानना


बहुत सरल है जानना
फिर भी जटिल विषय रहा
प्रेम, आँसू और क्रोध
से मिलकर बनता त्रिया चरित्र,
ये संसार तो मन की शक्ति से
हमेशा ही गतिमान रहा
साथ ही सांंसारिक होने के लिए
जरूरी होता है शरीर का होना,
धरती पर जीवन की शुरुआत
के साथ ही स्त्री मन ने
समझ लिया था कि प्रेम और सृजन
जीवन की पहली जरुरतें होती हैं,
प्रकृति के हर कौतूहल से उपजे
अपने प्रश्नों के उत्तर की तलाश में
बेटियाँ नही जानती
अपनी सीमाएं, वर्जनायें
फिर उम्र बढ़ने के साथ ही साथ
धीरे-धीरे समय की सीढ़ियोंं पर
कदम -दर-कदम
आगे बढ़ते हुए उन्हें समझ में आने लगती है
अपने अस्तित्व की मिठास,
ये मिठास होती है जिंदगी की
कोई विवशता तो नही होती
बल्कि ममत्व और स्नेह की
दायित्व की मिठास होती है,
सृजन के बीज
आत्मीयता के अंकुर के परवान चढ़ते ही
जिंंदगी में अनगिनत बदलाव
होते जाते यूँँ ही,
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यही सच है
जिंदगी का एहसास कोई मज़ाक तो नही
भय, भूख और जरूरतों से पनपी
परिभाषाओं ने परिवार की परम्परा पनपाई
जिसके केंद्र बिंदु में रहती रही है
हमेशा नारी,
दुनिया की बेतरतीब परम्पराओं
रिवाजों ने भले ही जिंदगी को
अंंधेरी गुफा में तब्दील कर
अंंजाने डर पनपाये ,
अंंजाने डर ने क्रोध रोपित किये
मन की ज़मीन पर,
जीवन नही
जहाँ पर केवल साँसें ही
महसूस की जा सकती हैं,
फिर भी मैं एक नारी
सभी रिवाजों, परम्पराओं
अंंजाने डर के बीच
बिखरे हुए साहस को समेटने
हर एक इम्तिहान के सागर को पार करने
अंंधेरी गुफा होती जिंदगी में
रोशनी की किरणों को
अपने भीतर सहेजने
समूल संसार में बिखेरने
साँँसों के मधुर बहाव मेें बंधकर
समय की सहजता और जटिलताओं के
साथ जीवन की एक और झलक पाने के लिए
फिर से आना चाहूँगी नारी बनकर
धरती पर सुखद भविष्य के सृजन का निर्माण करने।