बहुत सिरफिरे हो गए हैं
बहुत सिरफिरे हो गए हैं
सुना हैं साहब लोग,
बहुत सिरफिरे हो गए हैं !
अपने मुंह की खाने को,
औरों का निवाला बना लेते हैं !
ख़ुद को नहीं जानने को,
औरों की पहचान कराते हैं !
टपोरी सा जुवान चलाने को,
जहां जी चाहे मचलते हैं !
मनचलों की देख भीड़,
उनकी भी जवान फ़िसलती हैं !