अजनबी बनके शहर
अजनबी बनके शहर
अजनबी बनके शहर,
तुझे देखा करता हैं क्यों ?
इंसानों के ईमान में,
शहर आजाद हैं ख्याल में !
रुकता ठिथकता हैं शहर,
फ़िर चलता हैं ख़ुद की डगर !
अजनबी बनके शहर,
तुझे देखा करता हैं क्यों ?
शहर की बस्ती के,
लोगों की सोच हो गर विशाल !
प्रकृति बनती हैं,
हमारी सच्ची पहरेदार !
इंसानों के ईमान में,
इंगित हो अनूठा स्वर !
अजनबी बनके शहर,
तुझे देखा करता हैं क्यों ?