ख़ुद को जगाती हैं
ख़ुद को जगाती हैं
जिसके मुख मुस्कान उमरता है,
हर अनहोनी भी दूर भागता है !
जो सुख दुख में समानता की लहर पाता हैं,
वही आदमी विद्याता को भी खूब भाता हैं !
परिस्थिति भी फुले न समाती हैं,
औरों की ख़ुशी ख़ुद को जगाती हैं !
प्रकृति भी ख़ुद को परिपूर्ण पाती हैं,
जब इंसान उसके दर्द को समझ पाती हैं !