बहुत कमी है मुझमें
बहुत कमी है मुझमें
बहुत कमी है मुझ में
क्यों आता नहीं समझ में?
माया मोह में उलझे हैं
गलतियां दिखती है हमको सब में।
माफ कर देते हैं गलतियां करके खुद को हम।
दूसरे अपनी बेगुनाही की खालें भले ही कितनी भी कसम।
हम उनकी सुनते नहीं।
माफ उन्हें करते नहीं।
रिश्ते तोड़ने से हम डरते नहीं।
उनकी एक गलती के कारण
उनकी सौ अच्छाइयों को भी याद हम रखते नहीं।
अपने मनगढ़ंत तर्क परमात्मा को भी दे देते हैं।
अपनी कमियों को हम उजागर ही कहां करते हैं।
मन में कुछ भी सोच रहे होंगे हम।
लेकिन जमाने के सामने जिक्र परमात्मा का ही किया करते हैं।
दूसरों की नजर में हम अच्छे बना करते हैं।
यूं दिखाते हैं मानो हम सब कुछ परमात्मा के लिए ही करते हैं।
परमात्मा बहुत कमी है मुझमें लेकिन धन्यवाद करती हूं परमात्मा आपका।
क्योंकि आप फिर भी मुझे माफ किया करते हैं।
मेरी सारी इच्छाओं को पूरी किया करते हैं।
मेरे सारे डरों को दूर किया करते हैं।
विश्वास है परमात्मा मुझको आप पर।
आप ही हो जो सब की कमियों में सुधार किया करते हो।
माया मोह से उलझे मन में प्रेम, शांति और समर्पण एक दिन भर दोगे।
बहुत कमी है मुझमें लेकिन एक दिन सारी कमियां तुम दूर कर दोगे।
