बहु ही तो है।।
बहु ही तो है।।
मन में एक ख्याल आता है
कि बहू ही तो है
बेटी थोड़ी है, जो हम शौक पूरे कराएंगे।
पढ़ाई लिखाई अपनी जगह है
पर घर का काम भी तो ज़रूरी है
बहू ही तो है,
बेटी थोड़ी है।
माना नौकरी ज़रूरी है
पर बच्चों को पालना भी तो ज़रूरी है
बहू ही तो है,
बेटी थोड़ी है।
सुबह जल्दी उठती है तो क्या
खाना बनाना भी तो ज़रूरी है
बहू ही तो है,
बेटी थोड़ी है।
थक कर घर आती है तो क्या
मेहमानों की सेवा करना भी तो ज़रूरी है
बहू ही तो है,
बेटी थोड़ी है।
थोड़े पैसे कमाती है तो क्या
घर में दब कर रहना भी तो ज़रूरी है
बहू ही तो है,
बेटी थोड़ी है।
बेटी होती तो मान लेते
बेचारी कितनी मेहनत करती है,
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सुबह सुबह जल्दी उठ कर
काम पर जो जाती है,
थक हार कर वो बेचारी
घर को वापस आती है,
खाना क्या बनवाना उससे
खा ले वो यही काफी है,
तो क्या हुआ अगर
कुछ गाने वो गुनगुनाती है।।
वो बेटी है हमारी
इसलिए हमें है प्यारी
बहू भी तो अपने
माँ बाप की है दुलारी
क्यों इतना शंका रहती है
लोगों के ये मन में,
कि बहू हमारी बेटी नहीं
जो रहती है उस घर में।
क्या करें इस दुनिया का
जो आज भी यही कहती है
कि बहू घर का काम करे तो फ़र्ज़
और बेटी करे तो है मर्ज़।
क्योंकि वो बहू ही तो है,
बेटी थोड़ी है।।
बहू ही तो है,
बेटी थोड़ी है।।