भटकता बचपन
भटकता बचपन
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भटकता बचपन सड़को पर,
पहने धूल धूसरित वस्त्र।
बिलखता वेदना पूर्ण स्वर में,
दिनभर विचरता, भूख से तड़पता।
कुछ दुत्कारते उसको,
उछाल देते कुछ गिन्नियां।
सहता मार मौसम की,
न पैरो में जूतियां।
काँपता बदन सर्दियों में,
झुलसाती गर्मी में रश्मियाँ।
था आरसी वो सफलताओं का,
सरकारी योजनाओं का,
समाज में बढ़ रही भुखमरी,
तंगहाली और बीमारी का।