आओ कृष्ण
आओ कृष्ण
दुःशासनो की भीड़ में
चीखती पांचाली अब हर घड़ी
हर नारी है खड़ी
आज बन कर द्रौपदी
चीर खींचते, कर चहुओर है
इस स्थिति में न जाने कृष्ण किस ओर है
क्षत विक्षत सब संस्कार है
ऐसी खबरों का भी हो रहा व्यापार है
कानून पर भी अब न बचा ऐतबार है
हर तरफ उग चुकी ये खरपतवार है
आओ कृष्ण सीधी करो इन हैवानों की मति
अब हो गई है अति, अब हो गई है अति।
