भ्रूण की आवाज़
भ्रूण की आवाज़
1 min
302
बिन फेरे तेरे हुए,
कह दी दिल की बात।
जीत हुई है सुबह की,
हार चुकी है रात।
हार चुकी है रात,
हुए सच सपने अपने।
टूटे रीति-रिवाज,
पड़े नहीं माला जपने।
कहता है आज़ाद भेद,
अब नहिं तेरे मेरे।
दिल दिल से जुड़ गए,
हुए बिन फेरे तेरे।
प्रेम न देखत जाति कुल,
प्रेम न देखत धर्म।
प्रेम के रूप अनेक हैं,
बसत मनुज के मर्म।
बसत मनुज के मर्म,
डरत नहिं संकटआते।
तेरे मेरे मन मिलकर
हँस-हँसकर बतियाते।
कहता है आज़ाद प्रेम
सब कोइ को मेलत।
हँसते मिलते संग
जाति कुल प्रेम न देखत।