भोर
भोर
पाई पाई का कर रहे हैं जोड़।
भूल गए वो बचपन की भोर
कर रहे सांसो का हिसाब जी तोड़।
ठग रहे हैं खुद को ही पुरजोर
इस दौड़ में आगे किसे रहना है।
किसे पीछे छूटना है
बातों में ही उलझ रहे हैं हर और।
दूर कहीं बैठा जो देख रहा सब और
छोड़ चुका अब कठपुतली की डोर।