"भीतर युद्ध"
"भीतर युद्ध"
भीतर युद्ध चल रहा है,अति भयंकर
गूंज रहा है,नगाड़ों का भी उच्च स्वर
हाहाकार मचा है,अति प्रलयंकर
सृजनकारी विचार बन रहे है,भीतर
विध्वंसकारी भी पल रहे है,भीतर
किसकी सुनू,धुन में खोया है,नर
भीतर युद्ध चल रहा है,अति भयंकर
अच्छे-बुरे मन कर रहे है,तर्क-वितर्क
बुरा मन कहता,दिल मे भर तू जहर
अपने स्वार्थ के लिये,तू कुछ भी कर
झूठ की चल रही है,बड़ी प्रचंड लहर
अच्छा मन कहता है,किसी से न डर
भीतर युद्ध चल रहा है,अति भयंकर
अच्छाई से ही चमकता है,हर शहर
बुराई से नही मिलता है,उजला घर
जितनी अच्छाई भरेगा,तू तेरे भीतर
उतना ही मिलेगा तुझे ख़ुशहाली वर
जो मन बुराइयों का बसाते,भीतर घर
उनका मकान बन जाता है,खंडहर
भीतर युद्ध चल रहा है,अति भयंकर
काम,क्रोध का आया है,तेज बवंडर
लोभ,मद,ईर्ष्या के डस रहे है,विषधर
इसी बीच धीमे से आ रहा एक स्वर
तू न घबरा,हे कर्मवीर तू चलता चल
खुद पर रख भरोसा,श्रम कर जीभर
उस रब की भी एकदिन होगी मेहर,
होगा सफल,बनेगा एकदिन तू अंबर
भीतर युद्ध चल रहा है,अति भयंकर
जरूर जीतेगा,धैर्य,संतोष रख भीतर
मिटा दे,सारी बुराइयों बनकर दीपक
सत्य-प्रकाश फैला भीतर इस कदर,
झूठ,फ़रेब रहे,सदा तेरे हृदय से बेघर!