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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Crime

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मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

Crime

भीड़ और भेड़ें

भीड़ और भेड़ें

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भीड़ और भेड़ें

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भीड़ और भेड़ों में कोई अंतर नहीं 

दोनों ही अंधी होती हैं 

आंखें होते हुए भी ...

इनको टिटकारी मारो /

बस थोड़ा सा उकसाओ 

बगैर कुछ सोचे - समझे 

कूद पड़ती हैं मरने, मारने के लिए ।


आजकल भीड़ बहुत बढ़ती जा रही है 

अंध भक्तों के रूप में,

चमचों के रूप में ...

भीड़ को हांकने वाला मौज मार रहा है 

पक्ष - विपक्ष की कुर्सी पर बैठकर 

और भीड़

सर्वनाश करने पर तुली है ।


देश में चहुंओर हाहाकार मचा है 

देश का मीडिया बांसुरी बजा रहा है 

देश का राजा मॉडलिंग में व्यस्त है 

देश का कर्मचारी दीमकों का कार्य कर रहा है 

और विपक्ष बची-खुची हड्डी चबाने में व्यस्त है ।


भीड़ या भेड़ें

 मुंह बांधकर धड़ - धड़ा - धड़ 

मौत के अंधे कुऐ में समा रही है

 कुल मिलाकर अब हमें भीड़ से अलग होना होगा

 अंधभक्त या चमचा का पट्टा उतार फेंकना होगा।


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