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Madan lal Rana

Inspirational

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Madan lal Rana

Inspirational

भानुदय्

भानुदय्

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नदी के तटों पर

तो कहीं पर्वतों के शिखर पर।

जंगलों के झुरमुटों से,

तो कहीं इमारतों के शीर्ष पर।

भिन्न स्रोतों से भानुदय,

हम रोज ही देखते हैं ।

आगमन पे उनके प्रफुल्लित हो,

नतमस्तक भी होते हैं।

भले ही दिखावे का सम्मान देकर,

हम धार्मिक परंपराओं को ढोते हैं।

पर अपने स्वार्थ में अंधे होकर

अपने ही अस्तित्व को खोते हैं।

अंधाधुंध मानव जनित प्रदूषण से ,

वो त्रस्त है।

जीव-जगत की सेवा के हौसले,

अब पस्त हैं।

मानव उन्नति कारक प्रयोगों से,

वो छलनी-छलनी होते हैं ।

पर सच पूछो तो वो,

हमारे ही भाग्य पर रोते हैं।

एक दिन ऐसा आएगा,

अपनी करनी पर हम रोएंगे।

खुद अपना गला दबाकर,

अपनी लाश को ढोएंगे।


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