बगिया का माली
बगिया का माली
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
एक नन्ही सी कली थी वो,
गुलशन में अभी तो खिली थी वो !
न महक थी फूलों सी उसमें,
न बागों की अभी रौनक थी वो !
क्या गेसुओं में उसे सजाता कोई,
क्या सेज में अभी उसे बिछाता कोई !
मासूमियत से भरी थी वो,
बस एक नन्ही सी अभी परी थी वो !
बागान में फूलों की क्या बात करें ,
जब कलियाँ भी यहाँ महफ़ूज नहीं !
क्या जानता था बगिया का माली ,
इस हैवानियत की आँधी अभी चढ़ेगी वो !!