बगावत
बगावत
धड़कनें करने लगी हैं अब बगावत
बिगड़ने लगी हैं , बहकने लगी है
चाहिए उन्हें भी थोड़ा सा मनौवल
रफ़्तार गलत वो पकड़ने लगी हैं
सांसों की डोर लरजने लगी हैं
रहकर भी दिल में जो खफा हो रहें हैं
ये मसला सभी के समझ से परे हैं
वैद्य भी अब तो बुलाएं गए हैं
नब्ज़ की चाल उनकी पकड़ से परे है
दवाएं , दुआएं बेअसर हो गई हैं
न जाने मेरा अब हश्र क्या होगा
होगा सहर या शाम हो जाएगी
मेरी जिंदगी यूं तमाम हो जाएगी।