बेटियाँ
बेटियाँ
रिश्तों के गुलदान में
मोगरे सी महकती हैं बेटियाँ,
घर- आंगन में
यहां वहां
बुलबुलों सी चहकती हैं बेटियाँ,
ये बेटियाँ,
अपने कोमल भावों से
सारा घर सजा देती हैं,
भूल जाते हैं
गम जमाने के,
जब बेटियाँ मुस्कुरा देती हैं,
कभी मां, कभी बहन,
तो कभी
दादी अम्मा बन जाती हैं,
बेटियाँ एक रिश्ते में,
जाने कितने ही
रिश्ते निभाती हैं,
ये नेमत है भगवान की,
ना कभी पराया करना इन्हें,
नाजुक डोर सा अहसास है ये
बड़ी नजाकत से
निभाया करना इन्हें।