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Bhawna Vishal

Others

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Bhawna Vishal

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अंतर्दर्शन

अंतर्दर्शन

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क्षण भर को जो थमकर देखा है

मैंने मुझको मेरे भीतर देखा है


जिस राग से अनभिज्ञ था मन

आत्मालाप वो मुखर देखा है


मेरा परिचय न था स्व से कदाचित्

कि स्वयं को कहां, किधर देखा है


नर्तन सा है, थिरकन सी है

दो श्वास का जब अंतर देखा है


प्रश्नों की तृष्णा से छिटक कर

भर सरोवर उत्तर देखा है


नश्वर जगत् के भय से विलग

आत्मा को अजर अमर देखा है।


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લોગિન