बेटी की पुकार
बेटी की पुकार
जाऊँ भी तो कहाँ जाऊँ, राह पथरीली सब,
हर राह दिख जाते, निशाचर हैं यहाँ।
बेटी होना पाप है क्या, बेटियों को श्राप है क्या,
नुचती हैं बेटियाँ क्यों, चारों ओर हैं वहाँ।
निशाचर घूम रहे, दिनरात सदा जब,
कैसे मैं बचूँगी अब, जाऊँ तो जाऊँ कहाँ।
कोई तो बता दो मोहे, कैसे बच पाऊँगी में,
कोई तो जगह होगी, बच पाऊँ मैं जहाँ।
