बेटी होती घर की लक्ष्मी
बेटी होती घर की लक्ष्मी
तर्ज-बाबुल की दुआएं लेती जा
(फिल्म- नील कमल)
बेटी होती घर की लक्ष्मी,
इसका आदर सत्कार करो।
हक इसको भी है जीने का,
न कोख में इसका संहार करो।
पढ़ लिखकर नाम करेगी ये,
इसको आगे तुम बढ़ने दो।
न काटो इसके पंखों को,
इसको उड़ान तो भरने दो।
दिल से तुम इसको दुआएं दो,
सपनों को इसके साकार करो।
हक इसको भी है जीने का,
न कोख में इसका संहार करो।
अपना हर फर्ज निभाती ये,
माँ, बेटी, बहन पत्नी बनकर।
दो कुल की लाज निभाती है,
दिल में अपने धीरज रखकर।
इसके इस त्याग को समझो तुम,
सहर्ष इसे स्वीकार करो।
हक इसको भी है जीने का,
न कोख में इसका संहार करो।
जब बेटा घर से निकालेगा,
तब बेटी बाँह पकड़ लेगी।
देकर के सहारा काँधों को,
लाठी भी तुम्हारी बन लेगी।
इसको भी सहारा दो अपना,
इस पर इतना उपकार करो।
हक इसको भी है जीने का,
न कोख में इसका संहार करो।
अंश ये भी है माँ-बाप का,
रोशन इससे भी होता वंश।
कभी दिल ना दुखाना तुम इसका,
देकर के पराएपन का दंश।
अपनापन देकर बेटी को,
इसको तुम लाड़-प्यार करो।
हक इसको भी है जीने का,
न कोख में इसका संहार करो।
