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Mansi Jain

Abstract

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Mansi Jain

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बेटा हम भी बूढ़े हो रहे हैं

बेटा हम भी बूढ़े हो रहे हैं

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बेटा हम भी बूढ़े हो रहे हैं

हाँ तुम बढ़ रहे हो पर साथ हम शिथिल हो रहे हैं

हाँ बेटा हम भी बूढ़े हो रहे हैं

अपनी एड़िया घिसकर जो नाज़ो से पाला हैं तुम्हें


हाँ इसका न ऋण न ब्याज चाहिय हमें

न सेवा न सुश्रुषा चाहिए हमें

हाँ बेटा हम भी बूढ़े हो रहे हैं

बचपन में निश्छल जैसे हमें देख मुस्कुराते थे तुम


बस वही हाँ वही मुस्कान आज हमारे

तुम्हारे बीच होने पर चाहिय हमें

हाँ बेटा हम भी बूढ़े हो रहे हैं

हाँ तुम बढ़ रहे हो पर साथ हम शिथिल हो रहे हैं

बचपन में हमारे वियोग में तुम्हारी बेचैनी


और आज हमारी मौजूदगी में तुम्हारी बेचैनी

कुछ चुभती है हमें

जैसे हम क्षमाशील थे तुम पर

तुम भी क्षमाशील हो जाओ हम पर

हाँ बेटा हम भी बूढ़े हो रहे हैं


हाँ तुम बढ़ रहे हो पर साथ हम शिथिल हो रहे है

अब हमारा बचपन आया है तो तुम हाथ थाम लेना

न भी थम सको तो समक्ष बस हमारे नैनो के रहना

वृद्धाश्रम की ठोकरे खाने का डर नहीं हमे

पर बस तुम हो और तुम ही हो हमारे जीने की वजह

हाँ बेटा हम भी बूढ़े हो रहे हैं


हाँ तुम बढ़ रहे हो पर साथ हम शिथिल हो रहे है

बिस्तर में अब हम पिशाब करदेते है

कितना दुखदायी है तुम्हारे लिए

उसकी क्षमा हम तुमसे लेते हैं


हाँ बेटा हम भी बूढ़े हो रहे हैं

हाँ तुम बढ़ रहे हो पर साथ हम शिथिल हो रहे हैं

धन वैभव सब कुछ हमारा तुम्हारा है हमेशा से

बस हमे देख भिन भिन मुसकरा देना यही आशा है तुमसे


हाँ बेटा हम भी बूढ़े हो रहे हैं

हाँ तुम बढ़ रहे हो पर साथ हम शिथिल हो रहे हैं।


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