STORYMIRROR

Mansi Jain

Abstract

4  

Mansi Jain

Abstract

मौन से मौन का संवाद

मौन से मौन का संवाद

1 min
742

तुम्हारे मौन से मेरा मौन संवाद करता है 

मेरी रूह का हर ज़र्रा प्रश्न हज़ार करता है 

क्यों आशियाना बनाये बैठे हो

तुम इस दिल में अबतक मेरे 


तुम्हारे मौन से मेरा मौन संवाद करता है 

कर लिआ विवाह तुमने कर्त्वय समझ कहीं अपना 

रखलिआ स्वाभिमान हमने भी अपना 

पर क्यों आज भी तुम्हारे मौन से

मेरा मौन संवाद करता है 


एक प्यासे की प्यास तोह बस एक प्यासा समझता है 

एक कृतघ्न की दरिद्रता दूसरा कृतघ्न 

क्या तुम्हारा मौन भी मेरा मौन समझता है 

तुम्हारे मौन से मेरा मौन संवाद करता है 


ये राम अली का अंतर किसी

अभोध बालक को जैसे समझ नहीं आता 

धर्म के नाम पर लाल हरा जुड़ना कुछ रास नहीं आता 

शायद तुम्हारे मेरे प्रेम को एक छोर नज़र नहीं आता 

तुम्हारे मौन से मेरा मौन संवाद करता है।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract