मौन से मौन का संवाद
मौन से मौन का संवाद
तुम्हारे मौन से मेरा मौन संवाद करता है
मेरी रूह का हर ज़र्रा प्रश्न हज़ार करता है
क्यों आशियाना बनाये बैठे हो
तुम इस दिल में अबतक मेरे
तुम्हारे मौन से मेरा मौन संवाद करता है
कर लिआ विवाह तुमने कर्त्वय समझ कहीं अपना
रखलिआ स्वाभिमान हमने भी अपना
पर क्यों आज भी तुम्हारे मौन से
मेरा मौन संवाद करता है
एक प्यासे की प्यास तोह बस एक प्यासा समझता है
एक कृतघ्न की दरिद्रता दूसरा कृतघ्न
क्या तुम्हारा मौन भी मेरा मौन समझता है
तुम्हारे मौन से मेरा मौन संवाद करता है
ये राम अली का अंतर किसी
अभोध बालक को जैसे समझ नहीं आता
धर्म के नाम पर लाल हरा जुड़ना कुछ रास नहीं आता
शायद तुम्हारे मेरे प्रेम को एक छोर नज़र नहीं आता
तुम्हारे मौन से मेरा मौन संवाद करता है।