बेरोजगारी
बेरोजगारी
सत्यता विलाप कर रही है,
झूठ खूब फल_फूल रही है।
शब्द बेरोजगारी कान,
खराब कर दिया है।
भारत कि अभिमान खराब,
कर दिया है।
झूठी डिंगों का बोलबाला है,
सरकारी यंत्र हस रही है।
बेरोजगार युवक रो रहें हैं,
खाली प्रलोभनों का,
तांता लगा है।
सभाएं और राजनीति,
खूब हो रहें हैं।
आवश्यकताएं बाट जो रही है,
उद्योगों और कलकारखानाओं की,
भाड़ी अभाव झेल रही है।
पच्चहत्तर पर पच्चीस हावी है,
यह भारत की उत्थान को,
रोक रही है।
शासन और प्रशासन मजे कर,
रहें हैं।
आलम यह गजब है,
बहुतों को बहुत हो रहें हैं।
थोड़े वाले सिमटते और,
सिमटते जा रहें हैं।
कहीं पर जाम पर जाम है,
कहीं पर प्यास भी अधुरी है।
गुमराह युवक नशे की,
शिकार हो रहें हैं।
अपने ही देश में लाचार और
बेवसी की जिन्दगी जी रहें हैं।
यह दिक्कत बेरोजगार,
की नहीं है, यह दिक्कत,
भारत देश कि है।
ऐसे बदलेगें ना ये विवशता,
शायद जनता ही भूल,
कर रही है।
राजा कोई ऐसा चुनें,
हकीकत का जिसको,
खबर हो।
मनसा जिनका नेक और
ईमानदार हो,
वही इस समस्या भाड़ी को,
इस लाचारी को मिटा,
सकते हैं।
वह कोई युग पुरुष हो,
वह कोई मशिहा हो।
काया कल्प कर दे,
हिन्दुस्तान की जान में जान,
डाल दे।
निष्ठुर बेरोजगारी,
का समूल नष्ट कर दे।
उत्साहित समृद्ध भारत में,
प्राण डाल दे।