बेपरवाह
बेपरवाह
खुद को बेपरवाह कर लिये
फ़िक्र में तुम्हारी
बिखरे बाल चिथड़े कपड़े
अब पहचान है हमारी
किस मोड़ पर खड़ा था
किस मोड़ पर आ गिरा
मूंह दिखाने के काबिल न रहा
लोग भी कहते है सिरफिरा
घुटन भरी जिंदगी हुई
सारे सपने उड़े हवा में
अपनों ने भी दामन छोड़ा
मैं व्यस्त गैरों की परवाह में
विनाश काले विपरीत बुद्धि
की कहावत चरितार्थ हुई
रहती झूठी मुस्कान लबों पर
ये कैसी पहचान मेरी।