बेनज़ीर हो गई
बेनज़ीर हो गई
उनकी नज़रों ने छुआ तो, मैं बेनज़ीर हो गई,
उनके रंग में रंगी हुई, ज़िंदा तस्वीर हो गई।
कभी मेरे सीने में धड़कता, दिल मेरा था,
नाम उनका लिखा, तो उनकी जागीर हो गई।
बड़ी ही शोख़ थी, नमकीन अदाएँ थीं मेरी,
इश्क ने मुझ को छुआ, मैं मीठी खीर हो गई।
मुझ को मिल ही गया, जिसकी तमन्ना की थी,
शुक्र-ए-ख़ुदा तुझे, क्या गज़ब तकदीर हो गई!
ख़्वाब देखती थी, ख़्वाबों में ही जी रही थी मैं,
उनसे जब मैं मिली, ख़्वाबों की ताबीर हो गई।
इश्क में मैं 'श्वेता', दीवानी बनी फिरने लगी,
वे बन गए हैं रांझा, मैं उनकी हीर हो गई।

